विकास की इबारत लिख गयीं प्रो.अन्नपूर्णा–डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल   

गबर सिंह भण्डारी

देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल को गढ़वाल विश्वविद्यालय के विकास का पर्याय कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। निष्पक्ष कार्यशैली, बेबाक बातचीत और सटीक निर्णय उन्हें उच्च शिक्षा जगत में श्रेष्ठ कुलपतियों की श्रेणी में ले आये हैं। उनके पांच साल के कार्यकाल में हुए अभूतपूर्व कार्यों ने विश्वविद्यालय के लिए नजीर प्रस्तुत की है। हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय पहले राज्य विश्वविद्यालय था। इसकी स्थापना 1973 में हुई थी। 2009 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। राज्य विश्वविद्यालय के दौरान उच्च शिक्षा जगत में इस विश्वविद्यालय का अपेक्षित महत्त्व नहीं रहा। केंद्रीय दर्जा मिलने के बाद धीरे-धीरे इसका महत्त्व बढ़ने लगा,परंतु अनेक चुनौतियां और समस्याओं से इसका पिंड नहीं छूट पाया। पांच साल पहले प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल ने इस विश्वविद्यालय में स्थायी कुलपति के रूप में पदभार संभाला और स्वयं के सामने खड़ी चुनौतियों का डटकर मुकाबला कर उन्हें समाधान तक ले गईं। स्थायी कुलपति बनने से पहले लगभग एक साल तक वे विश्वविद्यालय की प्रभारी कुलपति रहीं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति विज्ञान की विशेषज्ञ के रूप पर ख्याति अर्जित कर चुकीं प्रो.अन्नपूर्णा ने अपने कार्यकाल में गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खासी पहचान दिलाई। 13 साल के गैप के बाद उन्होंने अपने कार्यकाल में विश्वविद्यालय में लगातार छह अलंकरण समारोह आयोजित करवाये,ये कार्यक्रम किसी विश्वविद्यालय के अध्ययन कर चुके छात्रों को डिग्री प्रदान करने के गरिमामय कार्यक्रम होते हैं। इस विश्वविद्यालय में 2023 में आयोजित अलंकरण समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुईं। पहली बार इस विश्वविद्यालय के किसी कार्यक्रम में कोई राष्ट्रपति आया। प्रो.अन्नपूर्णा के कार्यकाल में ही विश्वविद्यालय में 13 हिमालयी विश्वविद्यालयों और दो शोध संस्थानों का एक संघ बनाया गया। इसका उद्देश्य इन संस्थानों द्वारा एक फोरम पर अपनी समस्याओं को प्रस्तुत करना और विकास के मुद्दों पर विमर्श करना था। इसी काल में नीति आयोग को पांच नीति रिपोर्ट्स सौंपी गयीं। राज्य सरकार से 72 करोड़ रुपये की राशि को अवमुक्त करवाने का कार्य प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल के कार्यकाल में ही हुआ,यह कार्य इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद से अटका हुआ था। प्राध्यापकों से एलटीसी,डीए बिल की 85 लाख की रिकवरी भी इस अवधि में की गयी। विश्वविद्यालय के लिए बहुत उपयोगी समर्थ मॉड्यूल्स का सर्वाधिक उपयोग लागू किया गया। यह सॉफ्टवेयर भर्ती प्रक्रिया,परीक्षा,प्रवेश,अवकाश प्रबंधन इत्यादि में बहुत उपयोगी है। ई-लर्निंग प्रक्रिया,वाईफाई सुविधा तथा पुस्तकालय का विकास उनके कार्यकाल में हुआ। ऑनलाइन बैठकों और इंटरव्यू इत्यादि को बढ़ावा देते हुए इस दौरान विश्वविद्यालय के लगभग 4.5 करोड़ रुपये की बचत की गयी। इन पांच सालों में विश्वविद्यालय में अध्यापकों की अभूतपूर्व संख्या में 183 भर्तियां की गयीं। इन नियुक्तियों में निष्पक्षता और पारदर्शिता रही। इन भर्तियों में भाई-भतीजावाद,रिश्वखोरी और घपले-घोटाले का कोई आरोप नहीं लगा। विदेश के अनेक विद्वान अभ्यर्थी भी इस नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा बन पाये। इस प्रकार विश्वविद्यालय के तीन परिसरो में पर्याप्त संख्या में शिक्षण स्टाफ उपलब्ध हो पाया। प्रेक्षागृह को सुविधासंपन्न बनवाकर कुलपति ने नाट्य विधा और लोकसंगीत के प्रति अपने प्रेम को दर्शाया। विश्वविद्यालय के मुख्यालय के निकट स्थित चौरास परिसर में स्वर्ण जयंती द्वार निर्माण के लिए धनराशि और दो नई एंबुलैंसों की सुविधा देना भी कुलपति प्रो.अन्नपूर्णा की उपलब्धियों का हिस्सा रहा। कुलपति प्रो.अन्नपूर्णा अपने पांच साल के कार्यों से संतुष्ट हैं। वे 30 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो गयी हैं। यद्यपि विश्वविद्यालय में नये कुलपति के आने तक उन्हें ही केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत कुलपति पद पर बने रहना होगा। उनके कार्यकाल के समाप्त होने से लगभग छह माह पहले चर्चा चली कि प्रो.अन्नपूर्णा को सेवा विस्तार दिया जा रहा है,इस पर विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और अध्यापकों और कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग में एक ईमानदार और कर्मठ कुलपति के साथ फिर से कार्य करने की खुशी की लहर दौड़ पड़ी,परंतु बताया जाता है कि प्रो.अन्नपूर्णा ने सेवा विस्तार के प्रति अनिच्छा व्यक्त कर अध्ययन में रत होने का निर्णय लिया। इस संबंध में प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल का कहना है-मेरा लगभग पांच साल का स्थायी कुलपति और लगभग एक साल प्रभारी कुलपति का कार्यकाल कैसा रहा,इसका आकलन और मूल्यांकन मैं स्वयं नहीं कर पाऊंगी,परंतु मैं इस दौरान अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति संतुष्ट अवश्य हूं। मैंने वह किया,जो आज तक नहीं किया जा सका। अब मैं अध्ययन,शोध और लेखन में अपना बाकी समय बिताना चाहती हूं। उम्मीद करती हूं कि मेरे कार्यकाल में छूटे कार्यों को नये कुलपति पूरा करेंगे।

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