‘गोदाम्बरी नेगी
छोड़ मोह प्राणी’
यह जग है माया का सागर,अधिक न कर अनुराग।
मोक्ष मार्ग पाना है प्राणी, जाग सके तो जाग।।
मिथ्या मोह छोड़ दे प्राणी,सब माया का जाल।
रेगिस्तान में भी दिखता है,पानी का ही ताल।।
मुरझाए सुमनों में अलि को, आये नजर पराग।
मोक्ष मार्ग पाना है प्राणी, जाग सके तो जाग।।
माया भ्रम पैदा कर मन में,दिखता सब खुशहाल।
पर भीतर घट भरा रहे मद, आत्म रहे बेहाल।।
लालच लोभ छोड़ दे बंदे,यह विषधर है नाग।
मोक्ष मार्ग पाना है प्राणी, जाग सके तो जाग।।
सब कुछ नश्वर है इस जग में,पल में सब मिट जाय।
तब राग अनुराग का धागा,कुछ भी ना कर पाय।।
फिर पछताये कुछ न मिलेगा,सब ले जाये काग।
मोक्ष मार्ग पाना है प्राणी जाग सके तो जाग।।