धूप से सुबह सलोनी और खुशनुमा है शाम

तुलसी बिष्ट (‘तनु )
धूप से सुबह सलोनी और खुशनुमा है शाम
आज दिन पर हुई, कुछ यूँ मेहरबाँ है शाम
सुलगता रहा इंतजार में तेरे दिन बेइन्तहा
मगर कितनी देर से आई लापरवाह है शाम

मिल गये हो तो अब खुशी के लब्ज न पूछो
दिन बन गया है मन्नत खुदा है आज शाम

उम्र गुजरी पर मुलाकातें पल न ठहरे
महकते हैं दिन ख्यालों से जवाँ है शाम

खैर खबर अपनें पराये दिन की सौदेबाज़ीयाँ
और तमाम दिन की दिनचर्या की दुकां है शाम
अपने छोड़के रहती है औलाद जिनकी शहर में
दिन है आस उनकी और सजा है शाम
कशमकश में जो दिन में न कह सके दिल की बात
उन बेबस आशिकों के लिए जुबां है शाम
मिलन हो गर इश्क में तो ये फुहार हैं बारिश की
जुदाई में सुलगते दिलों का धुआं है शाम

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