गब्बर सिंह भंडारी
श्रीनगर गढ़वाल। देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय आंचल के जनपद-पौड़ी गढ़वाल में अनेक सुरम्य स्थलों पर अनेक गांव बसे हैं,ऐसे ही श्रीनगर के निकट सुमाड़ी टीवी टावर धार को गौलक्ष्य पर्वत की महिमा अपनी भौगोलिक रचना में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। गौल्क्षय पर्वत की महिमा के विषय में हमें सुमाड़ी गांव के सुप्रसिद्ध लेखक,शिल्पी कला प्रेमी,संगीतज्ञ,समाजसेवी प्रकृतिवाद सृष्टि के विभिन्न आयामों का ज्ञान सजीवता शक्ति के सफल स्वरूप के महान शख्सियत भूतपूर्व सैनिक विमल चन्द्र काला (गोपी) ने हमें बताया कि गौल्क्षय पर्वत के सुरम्य पहाड़ी कि एक तरफ सुमाड़ी और दुसरी तरफ सरणा इस गौल्क्षय पर्वत की तलहटी में बसे यह दोनों गांव रमणीक जगह पर स्थित है। कुछ शताब्दी पूर्व गढ़वाल के मध्य भाग में अलकनंदा के तट पर बसे श्रीनगर को पूर्व गढ़नरेशों ने अपनी राजधानी बनाया था,यही से अलकनंदा के बाम भाग की ओर लगभग दो किलोमीटर चढ़ाई पार करने के बाद एक किलोमीटर उत्तर पूरब की ओर गौलक्ष्य पर्वत स्थित है। गौलक्ष्य पर्वत का वर्णन स्कंद पुराण के प्रथम खंड महेश्वर के केदार खंड नमक संस्करण में 172 वें अध्याय के पृष्ठ नंबर- 777 से 780 तक श्लोक नंबर- 26 से “पर्वतोअपि तव प्राज्ञ पुत्रत्वेन भविष्यति गौलक्षेति समाख्यात: सर्व पाप प्रणाशक: अवस्तय महादेवो बसति स्मं सदा तू य:,प्रसन्नो भून्महा रुद्र: प्रत्युवाच विशेणतम”श्लोक 30 तक महात्म्य वर्णित किया गया है की पूर्व युग में गोवृजेश नामक एक वैश्य गौ समूहों का महायश नाम से प्रसिद्ध महामुनि था, उसके पास हजारों गाय थी वह पुत्ररहित था,वह ना किसी से द्वेष करने वाला,न निंदक ना दुष्ट चित था। एक बार चिंता विष्ट वैश्य का विचार हुआ कि जिस रमणीय पर्वत पर मैं गायों को चराता हूं उसी रमणीय गौलक्ष्य पर्वत को मैं पुत्र मान लेता हूं और आज से यह मेरा पुत्र हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं,वह गायों का दूध पर्वत को देता था,इस प्रकार पुत्र की परितुष्टि के लिए दानशील को बारह वर्ष बीत गए,अंत में वहां जो महादेव निवास करते थे वे प्रसन्न हो गए। उन्होंने वैश्य से छल पूर्वक कहा तुम यहां क्या करते हो,हमेशा गायों का दूध इस गौल्क्षय पर्वत को क्यों देते हो, वैश्य ने कहा यह मेरा पुत्र है इसमें संदेह नहीं,उसके उपरांत शिव ने उसे दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारा सर्व लक्षणयुक्त पुत्र होगा,गौलक्ष्य नाम से यह प्रसिद्ध पर्वत सभी पापों का नाशक होगा। मैं गौल्क्षय पर्वत पर नित्य निवास करूंगा,इस समय मैं भी गौलक्षेश्वर नाम का हूं। गायों ने इस पर्वत पर कल्याणकारी गोमूत्र दिया वह धारा बनकर मेरे लोक को देने वाला होगा। इसी गौलक्ष्य पर्वत की गोद में बसा सुमाड़ी ग्राम दैवी-प्रकाश से ओत-प्रोत से अपनी अलग पहचान लिए बसा हुआ है। विमल चन्द्र काला (गोपी) ने आगे बताया कि गौल्क्षय पर्वत के ऊपर एक रमणीक स्थल पर हम लोग एक बार ब्रह्म मुहूर्त में आरती सुनने के हेतु एक समतल खेत में गए थे क्योंकि हमने वृद्ध लोगों से सुना था कि ब्रह्म मुहूर्त मे वहां आरती होती है वहां से हम लोग नागराजा मंदिर से लगभग डेढ़ सौ कदम की ओर चले होंगे कि अचानक हमें आरती के स्वर सुनाई दिए अभी वह जगह हमसे सौ कदम दूर रही होगी,और हम सब लोग वहीं पर जडवत खड़े रहे की फिर आरती सुनाई दे,लेकिन सुबह के छः बजे तक फिर नहीं सुनाई दी। उन्होंने आगे बताया कि मेरे मन में एक शंका है कि व्यास भगवान ने स्कंद पुराण में प्रथम खंड के माहेश्वर खंड में केदार खंड नमक संस्करण में वर्णित किया है कि गौलक्षेश्वर महादेव ने इसी गौल्क्षय पर्वत के इन्द्रगवन नामक तोक में महायश नामक ग्वाले को अपना दर्शन दिया था,और कहा था कि मैं इस पर्वत को छोड़कर पल भर के लिए भी अन्यन्त्र नहीं जाऊंगा,अब प्रश्न उठता है कि क्या इन्द्रगवन में देवताओं के द्वारा यह आरती तो नहीं होती होगी।