गोदाम्बरी नेगी (उत्तराखंड हरिद्वार)
धरती के आँचल में लेटे,
तकती थी आकाश की ओर।
पूछा व्योम से मैंने,
बता कहाँ है तेरा ओर और छोर?
कहता नभ,बाले! मैं
अस्तित्व विहीन हूँ ,
फिर भी विस्तृत हूँ नहीं दीन हूँ।
न रूप न आकार!
फिर भी मेरी छाया में ही,
पलता-बढ़ता ये संसार।
ग्रह-नक्षत्र चाँद सितारे,
जैसे मेरे बच्चे प्यारे।
अनगिनत गंगाएँ
सजती हैं मेरे भी द्वारे।
काले श्वेत घन अंगना में,
करते अठखेलियाँ सारे।
नाना खग वृंद विचरते,
कलरव करते देख नजारे।
चपला चंचल दमके चमके,
धूम मचाती है वो जमके।
मैं ही ब्रह्माण्ड व्यापक,
मैं ही सृष्टि का संस्थापक,
मैं शिव स्वरूप मेरा आदि न अंत।
देह त्याग ले आत्म रूप,
मुझ में ही समाते सारे संत।
थक जाओगी तुम तक-तक,
पहुँच सकोगी ना मुझ तक।
पहुँच सकोगी न मुझ तक।।