नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के तहत एक विशेष कमेटी का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे। कमेटी के सदस्यों का नामांकन अभी तक जारी नहीं हुआ है। यह कदम सरकार द्वारा बजट सत्र के बाद लिया गया है और इसका मुख्य उद्देश्य ‘एक देश-एक चुनाव’ को प्रमोट करना है।
सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है, जिसमें ‘एक देश-एक चुनाव’ के मुद्दे पर चर्चा होगी। इसके बाद नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होंगे।
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर समिति की रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होगी, और उन्होंने संसद के परिपक्वता को दरकिनार दिया।
वन नेशन, वन इलेक्शन कमेटी के बारे में शिवसेना के अनिल देसाई ने कहा, ‘मुझे मीडिया के माध्यम से जानकारी मिल रही है, इस तरह की बातें फैलाना ठीक नहीं है। 5 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं सरकार को ये देखना चाहिए कि देश के लोग क्या चाहते हैं, उनके मत को भी ध्यान में रखना चाहिए।’
एक देश-एक चुनाव के क्या हैं लाभ?
एक देश-एक चुनाव के पक्ष में यह कहा जाता है कि इससे चुनाव में होने वाले भारी खर्चों से बचा जा सकता है। इसके साथ ही बार-बार चुनाव की तैयारी से छुटकारा मिलेगा, और देश के विकास कार्यों को अवरुद्धि नहीं मिलेगी।
एक देश-एक चुनाव से क्या हो सकते हैं नुकसान?
इसके खिलाफ तर्क यह है कि इससे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच मतभेद और ज्यादा बढ़ सकता है, जिससे संसद में किसी एक पार्टी को एकतरफा लाभ हो सकता है।
राष्ट्रीय-क्षेत्रीय पार्टियों में मतभेद
इसके विरोध में यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे राष्ट्रीय पार्टियों को बड़ा फायदा पहुंच सकता है जबकि छोटे दलों को नुकसान होने की संभावना है।
इस नई पहल के प्रति लोगों के भावनाओं में भाग लेने और इस पर गहरे विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह देश के चुनाव प्रक्रिया को पूरी तरह से बदल सकता है।