गब्बर सिंह भंडारी
रुद्रप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। देवभूमि उत्तराखंड में अनेक देवी देवता विराजमान हैं,इस देवभूमि में भगवान शिव का कण-कण में वास है।आज हम आपको रुद्रप्रयाग जनपद के बच्छणस्यूं पट्टी के महड़ गांव में स्थित पौराणिक स्वयंभू पंचमुखी शिवलिंग के विषय जानकारी दे रहे हैं। इस मंदिर में खास बात यह है कि यहां समाधि स्थल भी मौजूद है लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव में यह धार्मिक धरोहर श्रद्धालुओं की नजरों से ओझल है,मान्यता है कि मड़मुख शिवालय समेत यहां मौजूद अन्य देवी देवताओं के मंदिरों का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था यहां पर स्वयंभू पंचमुखी शिवलिंग है,मंदिर के गर्भगृह का क्षेत्र प्राचीन पत्थरों से बना हुआ है साथ ही यहां पर धूनी भी मौजूद है। इस पंचमुखी स्वयंभू शिवलिंग मंदिर के विषय में क्षेत्र के जाने-माने कथावक्ता डॉ.प्रकाश चन्द्र चमोली ने बताया कि यह देवभूमि देव मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है इसी कड़ी में रुद्रप्रयाग जनपद के महड़ गांव में स्थित भगवान शिव का पौराणिक पंचमुखी महादेव का मन्दिर है। जो कई सन्दर्भों से जुड़ा हुआ है सर्व प्रथम यह जानना जरूरी है शिव को पंचमुखी क्यों कहा जाता है। भगवान शिव के पांच मुख में अघोर,सद्योजात,तत्पुरुष,वामदेव और ईशान हैं,इसलिए उन्हें पंचानन या पंचमुखी कहा जाता है। शिव के इन सभी मुख में तीन नेत्र भी हैं,जिस कारण उनके कई नामों में एक नाम त्रिनेत्रधारी भी है,पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान श्रीहरि विष्णु ने मनोहर किशोर रूप धारण किया। दूसरी बात शिव लिंग पर मुख बने हुए हैं जो भारत वर्ष में कम देखने को मिलते हैं,यह मन्दिर पट्टी बच्छणस्यूं के मध्य में स्थित है यह कैत्यूर शैली में बना मन्दिर समूह है,जनश्रुतियों के आधार पर यह ऐतिहासिक मन्दिर है शंकराचार्य द्वारा बनाया गया जो महड़ महादेव के नाम से प्रसिद्ध है,मान्यता के अनुसार महड़ शब्द मड़घट का अपभ्रंश है उसके नीचे श्मशान घाट था वैसे भी शिव को श्मशान वाली कहा जाता है। डॉ.प्रकाश चन्द्र चमोली ने आगे बताया कि लगभग 5200 वर्ष पूर्व में इस पांच मुख वाले शिवलिंग निर्माण किया गया था।
*आदौ लिंगों प्रपूज्याथ विल्वपत्रैव्र्वरानने,पश्चादन्यं महेशानि,लिंगों प्राथ्र्य प्रपूजयेत*
इस क्षेत्र का यह स्वयंभू पंचमुखी शिवलिंग मंदिर में विशेष रूप से श्रवण एवं माघ महीने में विशेष पूजा की जाती है,मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में पूजन गोगड़ के भट्टों एवं महात्माओं के द्वारा की जाती रही है तथा पौराणिक कथाओं का वाचन डॉ.प्रकाश चंद्र चमोली के द्वारा किया जाता रहा है,तथा एक आसनों पाठ कड़ाई काटना बृषभ दान करना भण्डारा आदि भी प्रत्येक वर्ष किया जाता है। इस विषय पर आचार्य केदार दत्त पोखरियाल ने बताया कि बच्छणस्यूं पट्टी के महड़ में स्वयंभू पंचमुखी महादेव लिंग स्वरूप मैं आदिकाल से विराजमान है पौराणिक मान्यताओं की अनुसार लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व पांडव काल में मड़मुख पंचमुखी शिवालय का निर्माण हुआ है, विशेषता कत्यूरी शैली से निर्मित यह मंदिर बड़ा दिव्या भव्य सिद्धपीठ है,मंदिर समूह में यहां स्थापित काली देवी,भैरवनाथ,हनुमान,लक्ष्मी नारायण,शनिदेव सहित मंदिर की भव्यता को बढ़ाते हैं, उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार आठवीं शताब्दी में शंकराचार्य द्वारा निर्मित यह मंदिर बच्छणस्यूं पट्टी की आस्था का प्रतीक है। फतेहपुर खांकरा वासी कुशलानंद भट्ट ने बताया कि उनके पूर्वज बताते थे कि पूर्व में शिवालय से कुछ दूरी पर शमशान घाट था,जहां पर दहा संस्कार होता था वहा की चिता से उठने वाला दुआ समाधि स्थल से बहार निकलता था आज भी मंदिर परिसर में समाधि के अवशेष मौजूद हैं। उन्होंने बच्छणस्यूं पट्टी वासियों से आग्रह किया है कि गढ़वाल मंडल का एक मात्र ऐसा स्वयंभू पंचमुखी महादेव को सजाने संवारने का कार्य करें शासन-प्रशासन को इस मन्दिर के विषय में जानकारी दे तथा मंदिर समिति के सदस्य पदाधिकारीगण विचार विमर्श कर मंदिर के सौंदर्यीकरण,धर्मशाला,निर्माण कार्य हेतु प्रस्ताव भेजे। बामसू क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता वासुदेव कंडारी ने कहा कि यह स्वयंभू पंचमुखी शिव मंदिर पौराणिक काले पत्थरों से बना हुआ है,भूकंप,भू-धंसाव व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कोई असर नहीं हुआ है,उन्होंने बताया कि मंदिर समिति से वार्तालाप करके शेष सौंदर्यीकरण व धर्मशाला निर्माण के संबंध में क्षेत्रीय विधायक भरत चौधरी एवं उत्तराखंड सरकार के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के पास प्रस्ताव भेजा जाएंगा। बच्छणस्यूं पट्टी व पंचमुखी महादेव मंदिर महड़ के निकटवर्ती ग्रामसभाओं के जनप्रतिनिधि महड़ की ग्राम प्रधान सरिता देवी,बामसू की ग्राम प्रधान सुधा कंडारी,डूंगरा की ग्राम प्रधान रेखा देवी आदि क्षेत्रीय लोगों से जानकारी प्राप्त की गई।