अलौकिक एवं दिव्य है गुरु माणिकनाथ धाम,चलो माणिकनाथ नाम से विशाल पर्यटन मेला होता है आयोजित

गब्बर सिंह भंडारी
श्रीनगर गढ़वाल। विकास खण्ड कीर्तिनगर के डागर पट्टी व भिलंगना के कोटी मगरों क्षेत्र से लगे सिद्धपीठ गुरु माणिकनाथ के अलौकिक दर्शनों से भक्त धन्य हो जाते हैं। खर्सू,मोरु,बांज,बुरांस सहित विभिन्न प्रकार की औषधीय से आच्छादित वन क्षेत्र के मध्य असीम आध्यात्मिक शक्ति को समेटे इस सिद्धपीठ के विकास पर यदि सरकार ध्यान दे,तो यह सिद्धपीठ प्रदेश के सबसे सुंदर धार्मिक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है। माना जाता है कि गुरुजी अपने आशीर्वाद स्वरुप मनवांछित फल सच्चे श्रद्धालुओं को देते हैं और गुरु दृष्टि जहां भी होती है वहां कभी अनिष्ट और आपदा विपदा नहीं आती। विद्वतजनों के अनुसार जब आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ और बद्रीनाथ की स्थापना की थी, उसी दौरान गुरुमाणिक नाथ भगवान श्रीकृष्ण के पावन धाम द्वारका नगरी से प्रस्थान कर केदारखंड में अवतरित हुए। उन्होंने कई वर्षों तक बद्रीनाथ केदारनाथ धाम में कठोर तप साधना की। इसके बाद गुरुमाणिक नाथ डागर पट्टी की पश्चिम दिशा की सर्वोच्च श्रृंखला में योगध्यान में अवकेंद्रित हुए। तपोभूमि उत्तराखंड में वर्णित श्री गोरखनाथ के अनुसार श्री माणिकनाथ,नाथ संप्रदाय के महासंत माने जाते हैं। इनकी तपस्थली से कई किलोमीटर दूर खड़ी और निर्जन पहाड़ी पर इन्होंने एक जल स्रोत ढूंढा जिसे गंगाजल के नाम से जाना जाता है। मंदिर पुजारी के स्वप्न में जाकर इन्होंने कह दिया कि इसी स्थान से मेरी पूजा अर्चना एवं स्नान के लिए जल लाया जाएगा, सार्वजनिक स्रोतों से नहीं। यह कार्य पुजारी ही कर सकता है या अन्य कोई निर्भीक साहसी। गढनायक वीर शिरोमणि माधो सिंह भंडारी के पिता कालू भंडारी को तात्कालिक टिहरी नरेश श्री शाह ने भूटान तिब्बत विजय परिणाम में जागीर मांगने को कहा,कालू भंडारी ने अपने लिए माणिक डांडा में गुरु सेवा और ग्राम पिलखी (फैगूल) बगीचे से लेकर मलेथा ऊसर भूमि तक की जागीर मांगी। इसी प्रसंगवस कोटी (फैगूल) गांव को कालू की कोठी भी कहते हैं। पिता की पराक्रम से प्रेरणा लेकर वीर शिरोमणि माधो सिंह भंडारी ने गुरु माणिकनाथ की कृपा से चौदहवीं शताब्दी में मलेथा की ऐतिहासिक गूल बनाने की घटना को अंजाम दिया था। चलो माणिकनाथ नाम से विशा पर्यटन मेला होता है आयोजित श्रीनगर में प्रत्येक वर्ष 30 मई से 1 जून तक यहां चलो माणिकनाथ नाम से एक विशाल पर्यटन मेले का आयोजन होता है। जिसमें डागर पट्टी सहित फैगुल, नैलचामी,ढूंढसिर,कड़ाकोट,अकरी,बारजुला आदि अनेकों क्षेत्रों और देश विदेश में रहने वाले श्रद्धालु गुरु माणिकनाथ के दर्शन हेतु पहुंचते हैं। यहां श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए गए आटा,दूध,घी,गुड़,चीनी आदि के मिश्रण से कई किलो वजनी केवल एक रोट बनाया जाता है। जिसे गुरु रोट कहा जाता है। प्रसाद स्वरूप सभी श्रद्धालुओं में यह रोट वितरित किया जाता है।”पांचवा धाम बने गुरु माणिकनाथ धाम” श्रीनगर क्षेत्रवासियों का कहना है कि इस पवित्र धाम को विकसित किए जाने की आवश्यकता है। गुरु माणिकनाथ सिद्धपीठ को मुख्य मोटर मार्ग से जोड़ा जाना चाहिए ताकि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं आसानी से सिद्धपीठ तक पहुंच सके यहां पर हेलीपैड लायक भूमि भी उपलब्ध है। शासन प्रशासन को इसे पांचवे धाम के रूप में विकसित किए जाने की आवश्यकता है। मेला समिति के अध्यक्ष कमल सिंह नेगी,कमल सिंह जाखी,प्रधान बलदेव सिंह,लाखीराम फोंदणी आदि ने बताया कि माणिकनाथ मन्दिर तक पहुँचने के लिए तीन किमी की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। उन्होंने श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु मंदिर को सड़क से जोड़ने की मांग की। डागर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता लाखीराम फोंदणी ने कहा कि क्षेत्र के विकास हेतु पर्यटन विभाग एवं आयुष विभाग संयुक्त रूप से यहां पर सर्वे करें। पर्यटन के साथ-साथ यह क्षेत्र जड़ी-बूटी शोध एवं निर्माण केंद्र के रूप में विकसित हो सकता है। जिससे यहां के युवाओं को रोजगार मिलेगा और पलायन रुकेगा।

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