सहूलियत के लिए सबकी अक्सर, हम अपने कदम पीछे खींच लिए

बसंती सामंत (ऊधम सिंह नगर)

सहूलियत के लिए सबकी अक्सर।
हम अपने कदम पीछे खींच लिए।।

सामने थे सपने हमारे मुस्कुराये खड़े।
हम बेबस से तब आंखें मींच लिए।।

दर्द था दिल में हमारे भी गहरा।
पर चुपके से हम दांत भींच लिए।।

कई हंसी नजारों के हम महज।
ख्वाबों में तस्वीर खींच लिए।।

गुल खुद का भीतर ही सुखाकर।
हम गुलशन दूजों के सींच लिए।।

इरादा तो पत्थर सा था हमारा।
बेरुखी देख हाथ पीछे खींच लिए।।

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