लोक संस्कृति में समाहित फ़ूलदेई जैसे पर्व भी खोलेंगे नौनिहालों के लिए स्वास्थ्य संवर्धन और भारतीय ज्ञान परंपरा के द्वार: डॉ.कविता भट्ट शैलपुत्री

गब्बर सिंह भंडारी

फूलदेई परंपरा को समर्पित फ़ुलारी बच्चों को किया गया बैग,पानी पीने कि बॉटल और पठन सामग्री का वितरण

श्रीनगर गढ़वाल। उत्तराखंड में इन दिनों फूलदेई की धूम रही। श्रीनगर के निकट विकास खण्ड खिर्सू के निकटवर्ती गांव सरणा तथा अन्य गांवों के बच्चों को इस अवसर पर बैग और पठान-पाठन सामग्री का वितरण किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पहाड़ी पृष्ठभूमि में संघर्षों और जड़ों से जुड़ी साहित्य अकादमी पुरस्कृत ख्यातिलब्ध लेखिका डॉक्टर कविता भट्ट असिस्टेंट प्रोफेसर दर्शनशास्त्र विभाग,हेमवंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल ने बच्चों का मार्गदर्शन और उत्साह वर्धन किया।
बच्चों को यह सामग्री वितरित करते हुए कहा कि उच्च शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। भारतीय ज्ञान परंपरा समस्त लोक परंपराओं के परिपोषण को भी साथ-साथ लेकर चलती है। उदाहरण के रूप में आयुर्वेद तथा अन्य विधाओं का ज्ञान जिस प्रकार से ग्रामीण अंचलों में संपोषित हुआ है,उससे यह स्पष्ट होता है कि पौराणिक स्थानीय परंपराओं का ही परिष्कृत रूप विभिन्न ग्रंथों में समाहित हुआ है।
उन्होंने बच्चों को पहाड़ की संस्कृति से जुड़ा गीत “हम छां गढ़वाली हमारो गढ़वाल,यो च हमारो पहाड़, या च हमारी जन्म भूूमि यो च हमारो गढ़वाल” गाना गाकर सिखाया।
फूलदेई पर्व का महत्त्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि यह पर्व बच्चों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य तथा उन्नयन के लिए एक स्वस्थ परंपरा है। वर्तमान में बच्चे केवल मशीन बनकर रह गए हैं। उनका पूरा ध्यान मोबाइल,वीडियो गेम्स और कंप्यूटर तक ही सीमित रह गया है। इसका परिणाम यह है कि बच्चों का यथोचित शारीरिक और मानसिक उन्नयन नहीं हो पा रहा है।
उत्तराखंड की फूलदेई परंपरा इस संबंध में अत्यंत महत्वपूर्ण है जो बच्चों को प्रकृति और उत्सव के उल्लास के साथ जोड़ती है। इस परंपरा के माध्यम से बच्चे आपस में मिलते जुलते हैं और प्रकृति से निकट संबंध जोड़ते हैं। सुसंस्कारों के साथ ही इस अवसर पर गाए जाने वाले फुलारी गीत और पकवानों का स्वाद बच्चो में प्रसन्नतावर्धक,ऑक्सीटोसिन,सेराटोनिन और डोपामिन जैसे महत्त्वपूर्ण हार्मोन को स्रावित करने में योगदान देता है। इससे उनका मनोशारीरिक स्वास्थ्य संवर्धन होता है। इसीलिए फूलदेई परंपरा महत्वपूर्ण,प्रासंगिक और समयानुकूल स्वस्थ संस्कृति की संवाहक है। जिस प्रकार से भारतीय ज्ञान परंपरा में स्वस्थ व्यक्तित्व हेतु व्यक्तित्व के विविध आयामों को परिपुष्ट करने की आवश्यकता बताई जाती है, ठीक उसी प्रकार से फूलदेई जैसी लोक परंपराएं भी व्यक्तित्व के उन्नयन और मनोशारीरिक उत्थान के लिए आवश्यक हैं।
तैलेश्वर महादेव मंदिर परिसर सरणा में आयोजित इस कार्यक्रम हेतु डॉ.कविता भट्ट और उनके पति सुभाष भट्ट ने बैग तथा पठन पाठन सामग्री उपलब्ध करवाई और बच्चों का उत्साहवर्धन किया। फूलदेई कार्यक्रम के शुभ अवसर पर मानिक ट्रेडर्स श्रीनगर की ओर से बच्चों को पानी पीने हेतु बॉटल उपलब्ध कराई गई। इस कार्यक्रम के अवसर पर बच्चों ने फूलदेई गीत गाए और आपस में एक दूसरे से संस्कृति संबंधी संवाद स्थापित किया। साथ ही संस्कृति और भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित क्विज प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। इसमें आसपास के ग्रामीण अंचलों में फूलदेई पर्व के अवसर पर घर घर देहरियों पर फूल सजाने वाले फुलारी बच्चों ने बढ़ चढ़कर प्रतिभाग किया और कार्यक्रम में उत्साहपूर्वक भारतीय ज्ञान संपदा से जुड़े विषयों पर परिचर्चा की।
फूलदेई कार्यक्रम के समापन अवसर पर अटल भारत फाउंडेशन की राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी गबर सिंह भण्डारी, तैलेश्वर महादेव मन्दिर के व्यवस्थापक शंकर सिंह भंडारी,प्रदीप बंसल,जगमोहन सिंह भंडारी,राम सिंह भंडारी,मनवर सिंह भंडारी,मानिक बंसल,जयपाल सिंह,कलम सिंह खत्री,राजपाल सिंह,विजय सिंह भंडारी आदि लोग उपस्थित रहे।

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