रेनु पान्डे( गाजियाबाद)
हैं बाल रूप भगवान राघव,
रज रहे निज धाम में।
देख तुम्हारे सुन्दर श्रीमुख को,
हम प्रसन्न निज गाम में।।
नासिका सुन्दर चिबुक,
कुन्तल सुशोभित गाल है।
है मन्द स्मित मुख चंद्र चारु,
प्रभाशिक्त तुव गाल है।।
बक्ष पर मणि हार शोभित,
लटक मुक्ता माल है।
सुन्दर सुशोभित ग्रिवा में
राजता बन माल है।।
दुई कर्ण शोभित कुन्डली,
और दुकूल दुई भूज पर।
हर अंग अंग सुषमा है सुन्दर,
भल मरुं उस रुप पर।।
पितांबर बसन सुन्दर,
कुंचित पट कटि रेख में।
पद रुनुक सुन्दर झुनुक बाजत,
मस्त छबि उस वेश में।।
एक धनुष है कर तुम्हारे,
दूसरा तुझ भाल पे।
उस भौंह की क्या करूं मैं वर्णन,
जो लसे तुव गाल पे।।
अब करो अनुग्रह बाल राघव,
बस रहूं तुझ साथ में।
भुज दंड में कोदंड शोभित,
और तीर दूजे हाथ में।।
मन मोहता है रुप राम का,
राम है सब रुप में।
हे सगुण रूप स्वरुप सुन्दर,
राम निर्गुण रुप में।।
धन्य धन्य तुम योगीराज,
धन्य है दुई कर तेरे,।
धन्य है वो बाल राम ,
जो गढ़ गये तेरे उकेरे।।
धन्य है अब ये अयोध्या
धन्य है अब भारतवर्ष।
राम राघव बसे जहां।
हो रहा चहुंओर हर्ष।।