डॉ दानिश जमाल और नर्सिंग अधिकारी के अथक प्रयास से नवजात शिशु को मिला नया जीवन

उत्तरकाशी,  जनपद के  भटवाड़ी ब्लॉक के ग्राम जामक निवासी मनीष राणा के लिए बीते कुछ सप्ताह भावनात्मक उतार-चढ़ाव, चिंता और उम्मीद से भरे रहे। 11 जुलाई 2025 को उनकी पत्नी का प्रसव ऋषिकेश स्थित सरकारी एस.पी.एस. उप जिला चिकित्सालय में हुआ था। यह प्रसव सामान्य रूप से हुआ, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में एक लंबा संघर्ष और चिकित्सकीय अनिश्चितता जुड़ी हुई थी।

गर्भावस्था के अंतिम दिनों में मिला खतरे का संकेत:-

उत्तरकाशी से गर्भवती महिला को OPD पता चला कि अल्ट्रासाउंड जांच में यह संभावना जताई गई थी कि शिशु की पोजीशन सामान्य नहीं है, जिससे प्रसव के दौरान जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसे में, बेहतर देखभाल और विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में प्रसव कराने के उद्देश्य से मनीष राणा अपनी पत्नी को प्रसव से लगभग 10 दिन पहले स्वयं ही ऋषिकेश ले गए।

सामान्य प्रसव के बाद अचानक बिगड़ी नवजात की तबीयत

प्रसव 11 जुलाई को हुआ और जन्म के बाद पहले दो दिन तक बच्चा बिल्कुल स्वस्थ दिखाई दे रहा था। परिवार ने राहत की सांस ली थी कि सब कुछ सामान्य है। लेकिन 48 घंटे के भीतर स्थिति ने अप्रत्याशित मोड़ ले लिया। नवजात को सांस लेने में परेशानी होने लगी और साथ ही दौरे पड़ने लगे। यह स्थिति गंभीर थी, जिसके चलते एस.पी.एस. उप जिला चिकित्सालय, ऋषिकेश से उसे तत्काल निजी पेनासिया अस्पताल रेफर कर दिया गया।

पेनासिया अस्पताल में 12 दिन का संघर्ष:-

पेनासिया अस्पताल में नवजात को कुल 12 दिन तक भर्ती रखा गया, जिनमें पहले पांच दिन उसे वेंटीलेटर पर रखना पड़ा। इस दौरान चिकित्सकों ने लगातार उसकी स्थिति को स्थिर करने की कोशिश की। लेकिन उपचार के बीच चिकित्सकों ने मनीष राणा को यह जानकारी दी कि शिशु की (TEF) सांस की नली और खाने की नली में छेद हो गया है, जो एक गंभीर चिकित्सकीय जटिलता है। इस कारण उसे वहां से भी रेफर करते हुए एम्स ऋषिकेश भेजने का निर्णय लिया गया।

एम्स ऋषिकेश में भी निराशा और घर वापसी:-

एम्स ऋषिकेश में विशेषज्ञ चिकित्सकों ने शिशु का मूल्यांकन किया, लेकिन स्थिति इतनी गंभीर थी कि उन्होंने भी इलाज के परिणाम को लेकर स्पष्ट आशा व्यक्त नहीं की। लगातार अस्पतालों के चक्कर, मानसिक तनाव, आर्थिक दबाव और चिकित्सकीय अनिश्चितता से थके-हारे मनीष राणा ने कठिन निर्णय लेते हुए अपने नवजात को घर, ग्राम जामक, उत्तरकाशी ले जाने का फैसला किया।

घर पर स्थिति और बिगड़ी, फिर जिला अस्पताल का सहारा:-

घर पहुंचने के बाद भी शिशु की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। दो दिन बाद, 27 जुलाई को स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई। ऐसे में मनीष राणा अपने नवजात को जिला अस्पताल उत्तरकाशी लेकर पहुंचे, जहां बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. दानिश जमाल ने तत्काल उसका परीक्षण किया और आपात स्थिति में भर्ती कर उपचार प्रारंभ किया।

डॉ. दानिश जमाल और टीम का चुनौतीपूर्ण उपचार:-

जिला अस्पताल उत्तरकाशी में शिशु का उपचार एक चुनौती से कम नहीं था। नाजुक स्वास्थ्य, पूर्व में हुई चिकित्सकीय प्रक्रियाओं के दुष्प्रभाव और लंबी यात्रा के बाद कमजोर हुई प्रतिरोधक क्षमता — सभी परिस्थितियाँ जटिल थीं। लेकिन डॉ. दानिश जमाल ने स्थिति का सूक्ष्म मूल्यांकन करते हुए उपचार की एक विशेष योजना बनाई।

नर्सिंग अधिकारियों और स्टाफ ने चौबीसों घंटे की ड्यूटी करते हुए ऑक्सीजन सपोर्ट, दवा प्रबंधन, पोषण और संक्रमण नियंत्रण पर विशेष ध्यान दिया। नवजात के शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बनाए रखना और धीरे-धीरे उसे स्वयं सांस लेने की क्षमता वापस दिलाना उपचार का प्रमुख हिस्सा था।

परिवार के लिए उम्मीद की किरण:-

अस्पताल में भर्ती होने के कुछ ही दिनों बाद शिशु की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार दिखाई देने लगा। दौरे की आवृत्ति कम हुई, सांस लेने में कठिनाई घटने लगी और खाने-पीने की क्षमता में सुधार हुआ। यह बदलाव न केवल चिकित्सकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि परिवार के लिए भावनात्मक राहत का क्षण भी था।लगातार निगरानी और उपचार के बाद बीते रविवार को शिशु की हालत स्थिर होने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। discharge के समय मनीष राणा और उनके परिवार की आंखों में आंसू थे — यह आंसू खुशी और कृतज्ञता दोनों के थे।

प्रमुख अधीक्षक की सराहना:-

जिला अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डॉ. प्रेम पोखरियाल ने इस उपलब्धि के लिए डॉ. दानिश जमाल और उनकी टीम की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि “यह केवल चिकित्सकीय कौशल का ही नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं और टीम वर्क का परिणाम है। जिस नाजुक स्थिति में यह नवजात अस्पताल में आया था, उससे उबारना आसान नहीं था।

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