गब्रर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है और यहां कण-कण में भगवान वास करते हैं,उत्तराखंड में दैवीय स्थलों और मंदिरों से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं,इन मान्यताओं पर लोग 21 वीं सदी में भी विश्वास करते हैं और ये मान्यताएं सच भी साबित होती हैं,ऐसी ही मान्यता पौड़ी जनपद के श्रीनगर स्थित कमलेश्वर महादेव मंदिर से भी जुड़ी है। घृत कमल पूजा अनुष्ठान भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली एक पूजा है यह पूजा श्रीनगर के कमलेश्वर महादेव मंदिर में की जाती है,इस पूजा में भगवान शिव के शिवलिंग को घी से ढका जाता है और 52 तरह के भोग लगाए जाते हैं। आज आपको ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी घृत कमल पूजा के विषय में यथासंभव जानकारी दे रहे हैं। भोलेनाथ की कामशक्ति जगाने यहां होती है खास पूजा सिद्ध कमलेश्वर मंदिर में घृत कमल पूजा का अनुष्ठान किया जाता है,इस अनुष्ठान में मंदिर के जी दिगंबर भेष धारण कर मंदिर की लोट परिक्रमा करेंगे। मंदिर में विराजमान शिवलिंग को घी से ढककर भगवान शिव को 52 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है
घृत कमल पूजा की मान्यताएं: मान्यता है कि घृत कमल पूजा सतयुग से चली आ रही है,इस पूजा को भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस पूजा के ज़रिए भगवान शिव में काम और वासना की जागृति होती है। इस पूजा से दैत्यों से मुक्ति मिलती है,घृत कमल पूजा की विधि: इस पूजा में भगवान शिव के शिवलिंग को घी से ढका जाता है,शिवलिंग पर मालू के पत्ते और सफ़ेद कंबल लपेटा जाता है,भगवान शिव को 52 तरह के व्यंजन चढ़ाए जाते हैं,धूप,पुष्प,और चंदन से सजी रुद्राक्ष की माला भगवान शिव को अर्पित की जाती है,दैत्यों से मुक्ति दिलाने काम पूजा-मान्यताओं के अनुसार,तारकासुर को वरदान था कि भगवान शिव के पुत्र से ही उसकी मृत्यु होगी,परन्तु भगवान शिव की पहली पत्नी सती की मृत्यु होने पर भगवान शिव ध्यान में लीन हो गये थे,तारकासुर के अत्याचार से परेशान होकर ऋषि मुनि और देवी देवता भगवान शिव को हिमालय पुत्री से विवाह के लिए मनाने गए,सबने मिलकर ये काम पूजा की ताकि शिव की कामशक्ति जागृत हो,वो विवाह करें और शिव का पुत्र हो और तारकासुर का वध हो सके,कहते हैं कि प्राचीन काल में इसी स्थान पर यह अनुष्ठान किया गया था,इसे घृत कमल पूजा के नाम से जाना जाता है,कमलेश्वर मंदिर में घृत कमल पूजा सतयुग से चली आ रही है,घृत कमल की पूजा भगवान शिव में काम वासना की जागृति के लिए की जाती है,दैत्यों से मुक्ति दिलाने और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने कमलेश्वर महादेव में पूजा अर्चना की थी,प्राचीन काल से चली आ रही इस परम्परा को अब मन्दिर के महंत निभाते हैं,लोकमतानुसार भगवान भोलेनाथ का ये अनुष्ठान उनके पुत्र गौरीनंदन गणेश की पूजा से शुरू होता है,पूजा 6 आवरणों में की जाती है,इसके बाद शिवलिंग को चारों ओर से घी से ढका जाता है,फिर मालू के पत्ते और सफेद कम्बल इसके चारों तरफ लपेटा जाता है,धूप,पुष्प,चंदन आदि के साथ रुद्राक्ष की माला शिवलिंग को अर्पित की जाती है.भगवान को 56 भोग भी अर्पित किए जाते हैं,अंत में मंदिर के महंत शरीर पर राख लगाते हुए दिगंबर अवस्था में लोटते हुए मंदिर की परिक्रमा करते हैं। कमलेश्वर महादेव मंदिर के महंत आशुतोष पुरी महाराज बताते हैं कि यह पूजा अचला सप्तमी को की जाती है जोकि इस वर्ष 4 फरवरी को है अतः इस वर्ष घृत्त कमल पूजा अनुष्ठान श्रीनगर की कमलेश्वर महादेव मंदिर में 4 फरवरी को किया जाएगा। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी ज्योर्तिविद ग्राम कोठियाडा पो.ओ,बरसीर रुद्रप्रयाग,श्रीकोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान।