बसन्त पंचमी के पुनीत सुअवसर पर गाय के गोबर और जौ को मकान के चौखट पर लगाने की अद्भुत मान्यता–लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला 

गबर सिंह भण्डारी

श्रीनगर गढ़वाल। बसंत पंचमी शुभ अवसर पर गाय के गोबर और जौ को मकान की चौखट पर लगाने की अद्भुत मान्यता अखिलेश चन्द्र चमोला वरिष्ठ हिन्दी अध्यापक राजकीय इंटर कॉलेज सुमाडी,उत्तराखंड की सौन्दर्यता अपने आप में अद्भुत व निराली है। इसकी अलौकिक सुन्दरता से आकृष्ट होकर महात्मा गांधी ने कहा-यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वह उत्तराखंड में ही है। इसकी अपार सुन्दरता के कारण मनीषियों ने भारत माता को शस्य श्यामला,सुजला,सुफला,मलय जल शीतलता आदि कहकर चित्रित किया। अनूठी परम्पराओं की वाहक भारतीय संस्कृति में हर पर्व त्योहार की अद्भुत मान्यता है।इन सभी त्योहारों का भी शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अपना अलग व अतुलनीय महत्व है। त्योहारों के पीछे कोई न कोई मार्मिक व हृदय स्पर्शी प्रसंग व महात्म्य जरूर जुड़ा है। इसी तरह का सौन्दर्य और प्रेम का प्रतीक बसन्त पंचमी का त्योहार भी है। इस त्योहार के पीछे शास्त्रों में इस तरह से कहानी का विवरण देखने को मिलता है की भगवान विष्णु की आज्ञानुसार ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की। जिसमें ब्रह्मा ने देखा कि सब अज्ञानता को लेकर जी रहे हैं,इस पहलू को देखकर ब्रह्मा जी को ग़ुस्सा आ गया,जिसके फलस्वरूप उन्होंने अपने कमंडल का पानी पृथ्वी पर छिड़क दिया। जिससे पृथ्वी पर कम्पन होने लगी। धीरे धीरे एक सुंदर सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी,अन्य दोनो हाथों में पुस्तक एवं माला थी।जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। तव ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी,सरस्वती नाम से संबोधित किया। इस दिन ग्रामीण आन्चिलिक में मातृ शक्ति अपने घर के चौखट पर जौ की बलड़ी तथा गाय के गोबर का लेपन करती है। जौ सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। गाय को गोमाता कहा गया है,जिसमें 33 करोड़ देवी देवताओं का वास माना जाता है। गाय का गोबर पवित्रता का द्योतक माना जाता है। इससे सारी नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती है। पितृदोष व काल सर्प दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। सुखद समाचार मिलने शुरू हो जाते हैं। जौ सुख समृद्धि व हरे भरे का प्रतीक है। इस संदर्भ में भी इस तरह की कहानी है कि मां सरस्वती के प्रकटीकरण होने के बाद मां सरस्वती ने कृष्ण जी की उपासना की। मां सरस्वती की पूजा से श्री कृष्ण ने बड़े खुश होकर उन्हे वरदान दिया कि बसन्त पंचमी के दिन जो तुम्हारी आराधाना करते हुए अपनी चौखट पर जौ और गाय के गोबर का लेपन करेगा उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। इस प्रकार बसन्त पंचमी का त्योहार प्रकृति के साथ लगाव होने के साथ साथ अन्न की महत्ता को भी उजागर करता है। बसन्त ऋतु में आम के वृक्षों में मंजरी आ जाती है। चारों ओर सुगंध मय वातावरण बन जाता है। कल्पना शक्ति साकार रूप ले लेती है। लेखक कला निष्णात स्वर्ण पदक के साथ विभिन्न राष्ट्रीय सम्मानोपाधियों से सम्मानित हैं।

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