सुख समृद्धि,दीन दुखियों की भाग्य विधाता बहुविख्यात मां नौण्यूं-नैना देवी

गब्बर सिंह भंडारी
श्रीनगर गढ़वाल। उत्तराखंड देवभूमि की बहुविख्यात मां नौण्यूं-नैना देवी का मन्दिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित रमणीक स्थल रुद्रप्रयाग जनपद के विकास खण्ड अगस्तमुनि,पट्टी बच्छणस्यूं के डुगरा-आरस्यूं के ठीक ऊपर माता का सुप्रसिद्ध मंदिर है,माताओं के अधिकतर स्थान ऊंचे स्थिनो पर होते हैं जिसका वैज्ञानिक महत्व बताया गया है,पहाड़ी स्थानों पर मनुष्य का धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं का विकास जल्दी होता है और भक्ति का फल जल्दी मिलता है। मां भगवती नैना-नौण्यूं देवी के विषय में हमें पूर्ण जानकारी क्षेत्र के प्रख्यात पुराणवक्ता डॉ.प्रकाश चन्द्र चमोली द्वारा प्राप्त हुई। क्षेत्रीय लोगों द्वारा जनश्रुतियों के आधार पर मां नौण्यूं-नैना देवी के बारे में कहा जाता है कि पुराने जमाने में यहां यक्ष गंधर्व का वास रहा है,उसी परम्परा का आधार माना जाता है कि काण्डई का कोई सुप्रसिद्ध व्यक्ति अपनी कन्या के साथ भ्रमण करने हेतु जंगल में गए थे,भ्रमण के दौरान वह कन्या वहां से विलुप्त हो गयी,उसने अपने पिता से भी कह दिया कि मैं आज से देवी बन गई मुझे ढूंढना नहीं वही स्थान नौण्यूं-नैना के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पुराने बड़े बुजुर्ग लोगों के द्वारा सुना जाता है कि नौण्यूं शब्द नयना या नैना शब्द से मिलता है,कदाचित ऐसा लगता है गढ़वाली भाषा का शब्द नौनी से भी यह शब्द माना जा सकता है,पौराणिक कथा अनुसार नयना अथवा नौण्यूं-नैना देवी की मान्यता इस प्रकार बताया गया है।

कथा के अनुसार देवी सती ने स्वयं का अंत कर लिया था,जिससे भगवान शिव व्यथित हो उठे,उन्होंने सती के शब को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया,जिससे सभी देवता भयभीत हो उठे,भोलेनाथ का यह रूप प्रलय कर सकता था,लेकिन तभी सभी देव गणों ने भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि अपने चक्र से सती के शरीर को टुकड़ों में विभक्त कर दें। पुराणों में नैना-नैण्यूं देवी मंदिर का वही स्थान है जहां देवी सती के नेत्र गिरे थे। मां भगवती नौण्यूं-नैना के मंदिर को लगभग हरियाली देवी के ही स्तर का माना जाता है,मां हरियाली देवी के मंदिर स्थापित आदि शंकराचार्य के समय का माना जाता है। मां भगवती नौण्यूं-नैना देवी में जाने से पहले नियम मंदिर जाने से तीन दिन पहले लहसुन प्याज छोड़ना पड़ता है मंदिर के नजदीक पेड़ नहीं काट सकते। इस विषय में आगे पुराणवक्ता डॉ.प्रकाश चन्द्र चमोली बताते हैं कि एक बार दो लड़कियों द्वारा ऐसा करने पर दंड मिला,उस स्थान पर बिरही ताल है जो बच्छणस्यूं पट्टी की शान है,इसी क्षेत्र के भारत पटवाल बताते हैं कि यह ताल नदी रूप में परिवर्तित होने वाली थी तब तक पौ फट गई नहीं तो अपार जन धन की हानि होती। और इसी क्षेत्र के सतीश पटवाल ने बताया कि प्राचीन समय में लोहे तांबे पीतल की खान थी जिसकी अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं। पुराणवक्ता यहां पूजन विशेष रूप से चैत्र नवरात्र में होता है बाकी खिरोक (खीर) श्रावण के एवं दीपावली के समय चढ़ाई जाती है और भक्तों द्वारा बीच-बीच में कीर्तन भजन कर भंडारा किया जाता है। इस नौण्यूं-नैना देवी मंदिर के पुराने पुजारी नौटियाल लोग हैं वर्तमान में कैलाश नौटियाल की देखरेख में पूजा अर्चना की जाती है। इसी मां भगवती के निकटवर्ती दूसरा मंदिर घल्डियाल देवता का है,वैसे तो सर्वे देव मयं जगत कहा जाता है कहना यह है कि देवी देवता तो सबके होते हैं फिर भी यह जो देवी है वह चार गांव की भूमियां देवी है जिसमें मुख्य रूप से डुंगरा,आरस्यूं,बांतोली,जैटा-बाड़ा तथा पूरी पट्टी में देवी प्रसिद्ध है,और आगे बताया जाता है कि जब भी कोई नया अनाज होता है तो पहले मां भगवती नौण्यूं-नैना देवी को चढ़ाया जाता है,नौण्यूं-नैना के साथ ही मां चंडिका का नाम भी लिया जाता है दोनों शक्तियों को एक साथ माना जाता है आम प्रचलन में लोग नौण्यूं चंडिका भी कहते हैं। मंदिर के नजदीक के गांव आरस्यूं व डुगरा से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित है और कांकर से बाड़ा के निकट से मंदिर के लिए रोड़ कटती है। इसी क्षेत्र के भरत पटवाल और राकेश पटवाल ने बताया कि बच्छणस्यूं पट्टी के डुंगरा गांव से 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर कर नैना झील के दर्शन होते हैं, नैना झील के तीनों तरफ छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच में काफी बड़े क्षेत्र में फैली प्राकृतिक झील है इस में वर्ष भर पानी रहता है लेकिन ग्रीष्मकाल में पानी कम हो जाता है,इस स्थान से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के साक्षात दर्शन होते हैं साथ ही जनपद पौड़ी का नजारा भी आंखों के सामने से दिखाई देता है। नैनी झील को पर्यटन,तीर्थाटन के रूप में विकसित किया जा सकता है जिससे इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा वहीं स्थानीय लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो सकेगा। फतेहपुर-खांकरा के कुशालानंद भट्ट ने बताया कि हमने पुराने बड़े बुजुर्गों से ऐसा सुना है की कभी जमाने में मां अलकनंदा नदी की कोई धारा यहां निकलती थी और आज भी इतनी ऊंचाई में वहां पर मां गंगा के गोल-गोल पत्थर दिखाई देते हैं।

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